उत्तराखंड राज्य की प्राकृतिक रूपरेखा || Natural Profile of Uttarakhand State
उत्तराखंड राज्य की प्राकृतिक रूपरेखा -
उत्तराखंड, भारत के सीमान्त राज्यों में से एक है। यहाँ का अधिकांश भाग पर्वतीय है। इस राज्य के उत्तर में हिमाचल प्रदेश एवं चीन, पूर्व में नेपाल, दक्षिण में उत्तर प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा एवं हिमाचल प्रदेश स्थित हैं। हिमालय की तलहटी में बसा ' उत्तराखंड ' मध्य हिमालय में 28°42' उत्तरी अक्षांश से 31°28' उत्तरी अक्षांश तथा 77°35' पूर्वी देशान्तर से 81°5' पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है। इस राज्य का आकार लगभग आयताकार है।
उत्तराखंड का लगभग 88 प्रतिशत भू-भाग पहाड़ी है। भूगर्भ की संरचना, नदी-घाटियां, प्राकृतिक वनस्पति, धरातल विन्यास की विविधता, पर्वत शिखरों की छटा, बर्फीले दरों और ग्लेशियरों आदि ने इसके प्राकृतिक भू-दृश्य को एक विशेष स्थिति प्रदान की है।
उत्तराखंड को स्पष्ट रूप से तीन प्राकृतिक भागों में विभाजित किया जा सकता है—
(1) महान हिमालय
(2) मध्य हिमालय
(3) शिवालिक तथा दून की पहाड़ियाँ
1. महान हिमालय : इस प्राकृतिक उपभाग को हिमाद्रि के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्वतीय भाग लगभग 50 कि.मी. की चौड़ाई में फैला है जिसकी अधिकांश पर्वत श्रृंखलाएं 4,800 से 6,000 मीटर तक ऊंची हैं। इस भाग में अनेक हिमनद भी पाए जाते हैं। परिणामस्वरूप भागीरथी, अलकनन्दा और यमुना आदि नदियों के उद्गम स्थल यहां पर स्थित हैं। हिमालय के इस भाग की मिट्टी तलछट की चट्टानों से निर्मित है जो अनेक स्थानों पर कट-छंटकर घाटियों के रूप में परिवर्तित हो गई है।
इस भाग में स्थित प्रमुख पर्वत चोटियों में नन्दा देवी (7,817 मीटर), कामेत (7,756 मीटर), बन्दरपूँछ (6,315 मीटर), माणा (7,273 मीटर), नन्दादेवी पूर्वी (7,434 मीटर), चौखम्भा (7,138 मीटर), त्रिशूल (7,120 मीटर), दूनागिरि (7,066 मीटर), पंचचूली (6,904 मीटर), नन्दाकोट (6,861 मीटर), बद्रीनाथ (7,138 मीटर) आदि हैं। इसके अतिरिक्त केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री आदि प्रमुख हिमनद हैं, जिनकी ऊँचाई 6000 मीटर से अधिक है। यह भू-भाग जलवायु की दृष्टि से सबसे ठण्डा स्थान है क्योंकि इस क्षेत्र में स्थित चोटियां सदा हिमाच्छादित रहती हैं। महान हिमालय का भाग अत्यन्त पथरीला और कटा-फटा है जो अनेक पंखाकार आकृति वाली मोड़दार शृंखलाओं द्वारा बना है। इस भाग में मुख्य रूप से गंगा नदी अपवाह तन्त्र, यमुना नदी अपवाह तन्त्र तथा काली नदी अपवाह तन्त्र विद्यमान हैं। ये नदियां महान हिमालय के उच्च पर्वत शिखरों पर स्थित हिमनदों से पूरे वर्ष जल प्राप्त करती रहती हैं। पश्चिमी भाग को छोड़कर लगभग सारे भाग में गंगा नदी अपवाह तन्त्र विद्यमान है। इस भाग में वर्षा अधिकांशतः जून से मध्य सितम्बर तक होती है जिसकी मात्रा 100-200 से.मी. तक होती है। शीत ऋतु में वर्षा नाम मात्र की होती है, थोड़ी-सी वर्षा हिमपात के रूप में होती है। ग्रीष्मकाल में होने वाली वर्षा मानसूनी प्रकार की होती है जो कि पर्वतों को पार कर उत्तर की ओर नहीं जा पाती।
हिमालय के इस भाग में शीतोष्ण कटिबन्धीय सदाबहार प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। इस क्षेत्र में सर, फर, साल, चीड़ और सागौन आदि के वृक्ष प्रमुख रूप से पाए जाते हैं। वृक्ष 10,000 फीट की ऊंचाई तक पाए जाते हैं तथा इससे अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में अनेक प्रकार की झाड़ियां और घास आदि ही पाए जाते हैं। पर्वतीय भाग में स्थित घाटियों के निचले क्षेत्रों में वनस्पति का पूर्णतः अभाव पाया जाता है। यहां के निवासियों का प्रमुख कार्य पशु-पालन है, कृषि केवल घाटियों के निचले क्षेत्रों में ही होती है।
2. मध्य हिमालय : हिमालय के पर्वतीय भाग का यह क्षेत्र महान हिमालय के दक्षिण में स्थित है। इसके अन्तर्गत अल्मोड़ा, उत्तरकाशी, गढ़वाल, टिहरी, नैनीताल आदि जिले आते हैं। इस उप-भाग में पर्वत श्रेणियां सामान्यतः 3,000 से 4,000 मीटर तक ऊंची हैं जो प्रमुख श्रेणी के समानान्तर पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर विस्तृत हैं। इन पर्वत श्रेणियों के मध्य कहीं-कहीं पर घाटियां स्थित हैं। मध्य हिमालय भू-संरचना की दृष्टि से काफी नवीन भाग है, जिसमें मुख्य रूप से अवसादी चट्टानें विद्यमान हैं। ये अवसादी चट्टानें लगभग 2,000 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में समतल मैदान के रूप में दिखाई देती हैं। जलवायु की दृष्टि से मध्य हिमालय उप-भाग में शीत ऋतु में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। तापमान शून्य से भी नीचे पहुंच जाता है; परिणामस्वरूप बर्फ भी गिरती है। जबकि ग्रीष्मकाल में मौसम सुहावना रहता है। इस ऋतु में औसतन तापमान 18° से. से 20° से. तक रहता है। जुलाई में ग्रीष्मकालीन मानसून द्वारा यहां पर वर्षा अधिक होती है, जिसकी मात्रा 150 से.मी. तक हो जाती है, इस कारण वर्षा ऋतु में यहां की नदियों का जलस्तर काफी बढ़ जाता है। मध्य हिमालय के लगभग सभी भागों में ग्रीष्मकाल में पर्यटकों का आवागमन होता रहता है क्योंकि ग्रीष्मकाल में यहां का मौसम देश के मैदानी भागों की अपेक्षा अधिक ठण्डा रहता है। लगभग सम्पूर्ण मध्य हिमालय का 50 प्रतिशत भाग वनों से आच्छादित है। इस क्षेत्र में चीड़, फर, देवदार, साल आदि के वृक्ष अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। ये वन आर्थिक दृष्टि से बहुत उपयोगी हैं क्योंकि इन वृक्षों की लकड़ी फर्नीचर आदि बनाने के काम आती है।
3. शिवालिक तथा दून की पहाड़ियां : हिमालय के इस भाग को ‘पाद श्रेणियों' के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये पहाड़ियां हिमालय के दक्षिण में स्थित हैं तथा अपेक्षाकृत निम्न ऊंचाई वाली हैं। उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर शिवालिक की पहाड़ियां काफी संकरी और नीचे की तरफ फैली हुई हैं। प्रमुख रूप से ये पहाड़ियां भी हिमालय पर्वत के समानान्तर ही फैली हुई हैं। शिवालिक के क्षेत्र में दक्षिणी अल्मोड़ा, मध्यवर्ती नैनीताल और देहरादून जिलों के भाग आते हैं जो 750 मीटर से 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। भू-संरचना की दृष्टि से ये पहाड़ियाँ हिमालय पर्वत से काफी अलग हैं। शिवालिक की पहाड़ियों के दक्षिणी भाग में कम ऊंची पहाड़ियाँ और लघु हिमालय के मध्य कई चपटी घाटियां स्थित हैं। इन घाटियों को 'दून' के नाम से पुकारा जाता है। 25 से 35 कि.मी. चौड़ाई एवं 350 से 750 मीटर ऊंचाई में फैली देहरादून जिले की यह घाटी काफी महत्त्वपूर्ण है। इस घाटी के आस-पास कोटा दून, पाटली दून, कोठारी दून, किरयाना दून आदि घाटियां भी स्थित हैं। शिवालिक तथा दून की पहाड़ियों वाले क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु, हिमालय के पर्वतीय भाग की अपेक्षा गर्म होती है। इस ऋतु में तापमान 28° से. से 33° से. तक रहता है, जबकि शीत ऋतु में तापमान 4° से. से लेकर 9° से. तक रहता है। परिणामस्वरूप शीत ऋतु में हिमपात के रूप में थोड़ी-सी वर्षा भी हो जाती है। इस भाग में वर्षा सामान्यतः वर्षा ऋतु और ग्रीष्म ऋतु में होती है। वर्षा की मात्रा 150 से 220 से.मी. तक रहती है। शिवालिक क्षेत्र में स्थित मसूरी, रानीखेत, चकराता, नैनीताल आदि भागों में ग्रीष्म ऋतु में मौसम काफी अच्छा रहता है, अतः मैदानी भागों से लोग यहां घूमने के लिए आते हैं। इस भाग में प्राकृतिक वनस्पति काफी मात्रा में पाई जाती है। यहां शीशम, आंवला, साल, चीड़, देवदार, बांस, ओक, वर्च आदि के वृक्ष अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैं जो आर्थिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
